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मज़हब की किताबों में भी इरशाद हुआ मैं - संजय मिश्रा शौक़ कविता - Darsaal

मज़हब की किताबों में भी इरशाद हुआ मैं

मज़हब की किताबों में भी इरशाद हुआ मैं

दुनिया तिरी ता'मीर में बुनियाद हुआ में

सय्याद समझता था रहा हो न सकूँगा

हाथों की नसें काट के आज़ाद हुआ मैं

उर्यां है मिरे शहर में तहज़ीब की देवी

मंदिर का पुजारी था सो बरबाद हुआ मैं

मज़मून से लिखता हूँ कई दूसरे मज़मूँ

दुनिया ये समझती है कि नक़्क़ाद हुआ मैं

हर शख़्स हिक़ारत से मुझे देख रहा है

जैसे किसी मज़लूम की फ़रियाद हुआ मैं

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In Hindi By Famous Poet Sanjay Mishra Shauq. is written by Sanjay Mishra Shauq. Complete Poem in Hindi by Sanjay Mishra Shauq. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.