ख़ामोश धड़कनों की सदा की किसे ख़बर
ख़ामोश धड़कनों की सदा की किसे ख़बर
वादे बहुत किए थे वफ़ा की किसे ख़बर
ख़्वाहिश गुनाह है तो गुनहगार मैं भी हूँ
हैं जुर्म बे-हिसाब सज़ा की किसे ख़बर
कहते हैं आदमी में ख़ुदाई का अक्स है
बंदे हैं बे-नियाज़ ख़ुदा की किसे ख़बर
सारा जहाँ मरीज़, मरज़ भी है ला-इलाज
पहचाने कौन दर्द दवा की किसे ख़बर
शायद सवाब तुम को भी मिल जाए सब के साथ
सज्दे में गिर भी जाओ दुआ की किसे ख़बर
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