दिल माँगे है मौसम फिर उम्मीदों का
दिल माँगे है मौसम फिर उम्मीदों का
चार तरफ़ संगीत रचा हो झरनों का
हम ने भी तकलीफ़ उठाई है आख़िर
आप बुरा क्यूँ मानें सच्ची बातों का
जाने अब क्यूँ दिल का पंछी है गुम-सुम
जब पेड़ों पर शोर मचा है चिड़ियों का
रात गए तक राह वो मेरी देखेगा
मुझ पर है इक ख़ौफ़ सा तारी राहों का
मेरे माथे पर कुछ लम्हे उतरे थे
अब भी याद है ज़ाइक़ा उस के होंटों का
पूरे चाँद की रात मगर ख़ामोशी है
मौसम तो है भीगी भीगी बातों का
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