वो गुम हुए हैं मुसाफ़िर रह-ए-तमन्ना में
वो गुम हुए हैं मुसाफ़िर रह-ए-तमन्ना में
कि गर्द भी नहीं अब आरज़ू के सहरा में
है कौन जल्वा-सरा बाम-ए-आफ़रीनश पर
उतर गए हैं सितारे से चश्म-ए-बीना में
मिली थी जिस को नुमू दर्द की सलीबों से
वो लम्स भी नहीं बाक़ी मिरे मसीहा में
कशीद जिन से हुई थी नए ज़मानों की
वो मय-कदे भी हुए ग़र्क़ मौज-ए-सहबा में
उठा लिया था जिन्हें ग़म ने शहर-ए-मातम से
वो हर्फ़ लिक्खे गए हैं ख़त-ए-शकेबा में
दिया शुऊर उजालों का सुब्ह-ए-मरियम को
चराग़ किस ने जलाया शब-ए-कलीसा में
उठा है अब के वो तूफ़ाँ जवार-ए-साहिल से
कि मौज भी नहीं महफ़ूज़ कअ'र-ए-दरिया में
जो ले गईं मिरे यूसुफ़ को बाब-ए-ज़िंदाँ तक
वो चाहतें भी नहीं दामन-ए-ज़ुलेख़ा में
वो ज़ख़्म जिन से मिला दर्द आश्नाई का
नहीं हैं वो भी 'समद' अब मिरे सरापा में
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