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वो गुम हुए हैं मुसाफ़िर रह-ए-तमन्ना में - समद अंसारी कविता - Darsaal

वो गुम हुए हैं मुसाफ़िर रह-ए-तमन्ना में

वो गुम हुए हैं मुसाफ़िर रह-ए-तमन्ना में

कि गर्द भी नहीं अब आरज़ू के सहरा में

है कौन जल्वा-सरा बाम-ए-आफ़रीनश पर

उतर गए हैं सितारे से चश्म-ए-बीना में

मिली थी जिस को नुमू दर्द की सलीबों से

वो लम्स भी नहीं बाक़ी मिरे मसीहा में

कशीद जिन से हुई थी नए ज़मानों की

वो मय-कदे भी हुए ग़र्क़ मौज-ए-सहबा में

उठा लिया था जिन्हें ग़म ने शहर-ए-मातम से

वो हर्फ़ लिक्खे गए हैं ख़त-ए-शकेबा में

दिया शुऊर उजालों का सुब्ह-ए-मरियम को

चराग़ किस ने जलाया शब-ए-कलीसा में

उठा है अब के वो तूफ़ाँ जवार-ए-साहिल से

कि मौज भी नहीं महफ़ूज़ कअ'र-ए-दरिया में

जो ले गईं मिरे यूसुफ़ को बाब-ए-ज़िंदाँ तक

वो चाहतें भी नहीं दामन-ए-ज़ुलेख़ा में

वो ज़ख़्म जिन से मिला दर्द आश्नाई का

नहीं हैं वो भी 'समद' अब मिरे सरापा में

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In Hindi By Famous Poet Samad Ansari. is written by Samad Ansari. Complete Poem in Hindi by Samad Ansari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.