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वो आरज़ू कि दिलों को उदास छोड़ गई - समद अंसारी कविता - Darsaal

वो आरज़ू कि दिलों को उदास छोड़ गई

वो आरज़ू कि दिलों को उदास छोड़ गई

मिरी ज़बाँ पे सुख़न की मिठास छोड़ गई

लिखी गई है मिरी सुब्ह के मुक़द्दर में

वो रौशनी जो किरन का लिबास छोड़ गई

उठी थी मौज जो महताब के किनारे से

ज़मीं के गिर्द फ़लक की असास छोड़ गई

ये किस मक़ाम-ए-तमन्ना से बे-ख़ुदी गुज़री

ये किस का नाम पस-ए-इल्तिमास छोड़ गई

चराग़-ए-ज़ीस्त से उतरी थी एक हर्फ़ की लौ

जिलौ में अपनी मिरा इक़्तिबास छोड़ गई

गुज़र गई है उफ़ुक़ से सिपाह-ए-शब लेकिन

जवार-ए-सुब्ह में ख़ौफ़-ओ-हिरास छोड़ गई

घटा उठी थी किसी तिश्नगी के सहरा से

जो क़तरा क़तरा समुंदर की प्यास छोड़ गई

मिरी ख़मोश-लबी मुझ में रात भर गूँजी

सदाएँ कितनी मिरे आस-पास छोड़ गई

ये किस ख़याल की परछाईं थी मुंडेरों पर

तमाम शहर को महव-ए-क़यास छोड़ गई

बसी जो आ के ज़मीं में 'समद' शनाख़्त मिरी

मिरे बदन में सजा कर हवास छोड़ गई

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In Hindi By Famous Poet Samad Ansari. is written by Samad Ansari. Complete Poem in Hindi by Samad Ansari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.