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उतरे तिलिस्म शब के उजालों पे रात-भर - समद अंसारी कविता - Darsaal

उतरे तिलिस्म शब के उजालों पे रात-भर

उतरे तिलिस्म शब के उजालों पे रात-भर

क़ुर्बां हुई है सुब्ह चराग़ों पे रात-भर

ज़ुल्मत में अपनी डूब गईं दिन की बस्तियाँ

सूरज तमाम चमके सितारों पे रात-भर

उतरे नहीं शबों में उड़ानों के हौसले

बैठे रहे परिंद भी शाख़ों पे रात-भर

इक लौ नहीं नसीब ग़रीबान-ए-शहर को

शमएँ जली हैं कितनी मज़ारों पे रात-भर

ढलती रही निगाह में चेहरों की चाँदनी

नाज़िल हुए यक़ीन गुमानों पे रात-भर

पैराहन-ए-जमाल है रख़्त-ए-बरहनगी

पहने गए हैं जिस्म लिबासों पे रात-भर

ख़ुशबू में जज़्ब हो गईं महताबियाँ 'समद'

शबनम हुई निसार गुलाबों पे रात-भर

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In Hindi By Famous Poet Samad Ansari. is written by Samad Ansari. Complete Poem in Hindi by Samad Ansari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.