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दस्त-ए-शबनम पे दम-ए-शो'ला-नवाई न रखो - समद अंसारी कविता - Darsaal

दस्त-ए-शबनम पे दम-ए-शो'ला-नवाई न रखो

दस्त-ए-शबनम पे दम-ए-शो'ला-नवाई न रखो

सुब्ह की गोद में शब भर की कमाई न रखो

मेरी यादों के सनम ख़ानों से उठने दो धुआँ

मेरे सीने पे अभी दस्त-ए-हिनाई न रखो

जाग जाए न कहीं हुस्न का सोता पिंदार

दीदा-ए-शौक़ में अंदाज़-ए-गदाई न रखो

शब को रहने दो यूँ ही शाम-ओ-सहर का पैवंद

डर के ज़ुल्मात से बुनियाद-ए-जुदाई न रखो

हुस्न भी अपने तक़ाज़ों से है आख़िर मजबूर

हुस्न के दोश पे इल्ज़ाम-ए-ख़ुदाई न रखो

फिर किसी तौर समेटो ये बिखरते हुए रंग

यूँ परेशान तसव्वुर की इकाई न रखो

अपने विज्दान से भी काम निकालो कोई

राहबर ही के लिए राह-नुमाई न रखो

अपने ज़ख़्मों को छुपाओ किसी उन्वान 'समद'

रहगुज़ारों में ग़म-ए-आबला पाई न रखो

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In Hindi By Famous Poet Samad Ansari. is written by Samad Ansari. Complete Poem in Hindi by Samad Ansari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.