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अपनी लौ में कोई डूबा ही नहीं - समद अंसारी कविता - Darsaal

अपनी लौ में कोई डूबा ही नहीं

अपनी लौ में कोई डूबा ही नहीं

चाँद एहसास का उभरा ही नहीं

कोई आहट न कोई नक़्श-ए-क़दम

जैसे दिल से कोई गुज़रा ही नहीं

चूर आईना-ए-अय्याम भी है

मेरा माज़ी मिरा फ़र्दा ही नहीं

दर्स मैं भी हूँ ज़माने के लिए

एक इबरत-गह-ए-दुनिया ही नहीं

कितनी सदियों पे रुकेगा जा कर

एक लम्हा कि जो बीता ही नहीं

कितना हैराँ है दहान-ए-तस्वीर

अक्स आवाज़ का उतरा ही नहीं

मैं भी था शहर-ए-सुख़न का मेआ'र

मेरे नक़्क़ाद ने परखा ही नहीं

यूँ चमकती है 'समद' काहकशाँ

जैसे तारा कोई टूटा ही नहीं

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In Hindi By Famous Poet Samad Ansari. is written by Samad Ansari. Complete Poem in Hindi by Samad Ansari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.