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आईना-दिल दाग़-ए-तमन्ना के लिए था - समद अंसारी कविता - Darsaal

आईना-दिल दाग़-ए-तमन्ना के लिए था

आईना-दिल दाग़-ए-तमन्ना के लिए था

सीने का सदफ़ इक दुर-ए-यकता के लिए था

जो तैरने वाले थे वो मंजधार से गुज़रे

दरिया का किनारा कफ़-ए-दरिया के लिए था

क्यूँ हाथ में तेरे मुझे पत्थर नज़र आया

दीवाना अगर था तो मैं दुनिया के लिए था

गुज़रा न तिरे बा'द कोई कूचा-ए-दिल से

ये रास्ता इक नक़्श-ए-कफ़-ए-पा के लिए था

दीवार से रुकता नहीं दीवार का साया

ज़ब्त-ए-ग़म-ए-माज़ी ग़म-ए-फ़र्दा के लिए था

कोई नहीं महफ़ूज़ यहाँ दस्त-ए-हवस से

यूसुफ़ का जो दामन था ज़ुलेख़ा के लिए था

बे-पर्दा चमकता है जो अब महफ़िल-ए-शब में

वो चाँद 'समद' कल यद-ए-बैज़ा के लिए था

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In Hindi By Famous Poet Samad Ansari. is written by Samad Ansari. Complete Poem in Hindi by Samad Ansari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.