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राह मिलती है घर नहीं मिलता - सलमान सईद कविता - Darsaal

राह मिलती है घर नहीं मिलता

राह मिलती है घर नहीं मिलता

घर मिले भी तो दर नहीं मिलता

जिस को देखा था मैं ने बचपन में

अब मुझे वो नगर नहीं मिलता

देखता हूँ जो ख़ुद को पानी में

जिस्म मिलता है सर नहीं मिलता

मुझ को इन ज़िंदगी की राहों में

कोई भी हम-सफ़र नहीं मिलता

जाने क्या हो गया है मौसम को

सब्ज़ कोई शजर नहीं मिलता

तुझ को 'सलमान' तेरी मेहनत का

जाने अब क्यूँ समर नहीं मिलता

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In Hindi By Famous Poet Salman Saeed. is written by Salman Saeed. Complete Poem in Hindi by Salman Saeed. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.