ज़िंदगी इस क़दर कठिन क्यूँ है
आदमी की भला ख़ता क्या है
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तेग़ खींचे हुए खड़ा क्या है
कभी ख़्वाबों में मिला वो तो ख़यालों में कभी
वो एक ख़्वाब जो फिर लौट कर नहीं आया
बुत समझते थे जिस को सारे लोग
निकले थे दोनों भेस बदल के तो क्या अजब
खुल के बातें करें सुनाएँ सब
ज़ुल्म है तख़्त ताज सन्नाटा
ज़िंदगी हम से तो इस दर्जा तग़ाफ़ुल न बरत
ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत न हो मगर
कहो तो आज बता दें तुम्हें हक़ीक़त भी
जब ये माना कि दिल में डर है बहुत