ये तमन्ना है कि अब और तमन्ना न करें
शेर कहते रहें चुप चाप तक़ाज़ा न करें
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इक वही शख़्स मुझ को याद रहा
मैं तुझ से लाख बिछड़ कर यहाँ वहाँ जाता
झूटी उम्मीद की उँगली को पकड़ना छोड़ो
दाइम सराब इक मिरे अंदर है क्या करूँ
ज़िंदगी इस क़दर कठिन क्यूँ है
रह गया कम ही गो सफ़र बाक़ी
मुझे ख़बर न थी इस घर में कितने कमरे हैं
ये अलग बात कि वो मुझ से ख़फ़ा रहता है
कोई शय एक सी नहीं रहती
कैसे हो क्या है हाल मत पूछो
हम जो पहले कहीं मिले होते
कुछ तो अपने लिए भी रखना है