कोई शय एक सी नहीं रहती
उम्र ढलती है ग़म बदलते हैं
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हम जो पहले कहीं मिले होते
खुल के बातें करें सुनाएँ सब
ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत न हो मगर
दर्द जब शाएरी में ढलते हैं
मुझे ख़बर न थी इस घर में कितने कमरे हैं
देखे जो मेरी नेकी को शक की निगाह से
कुछ तो अपने लिए भी रखना है
कहो तो आज बता दें तुम्हें हक़ीक़त भी
ज़िंदगी इस क़दर कठिन क्यूँ है
ज़िंदगी हम से तो इस दर्जा तग़ाफ़ुल न बरत
ख़ाली बरामदों ने मुझे देख कर कहा
मैं तुझ से लाख बिछड़ कर यहाँ वहाँ जाता