ख़ाली बरामदों ने मुझे देख कर कहा
क्या बात है उदास से कुछ लग रहे हो तुम
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वो भी हमारे नाम से बेगाने हो गए
मैं तुझ से लाख बिछड़ कर यहाँ वहाँ जाता
जागते में भी ख़्वाब देखे हैं
ज़िंदगी इस क़दर कठिन क्यूँ है
इक वही शख़्स मुझ को याद रहा
ये तमन्ना है कि अब और तमन्ना न करें
चाँद सूरज की तरह तुम भी हो क़ुदरत का खेल
कैसे हो क्या है हाल मत पूछो
दाइम सराब इक मिरे अंदर है क्या करूँ
वो एक ख़्वाब जो फिर लौट कर नहीं आया