हम जो पहले कहीं मिले होते
और ही अपने सिलसिले होते
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दाइम सराब इक मिरे अंदर है क्या करूँ
जब ये माना कि दिल में डर है बहुत
दर्द जब शाएरी में ढलते हैं
ये तमन्ना है कि अब और तमन्ना न करें
वो भी हमारे नाम से बेगाने हो गए
ये अलग बात कि वो मुझ से ख़फ़ा रहता है
वो एक ख़्वाब जो फिर लौट कर नहीं आया
ज़िंदगी हम से तो इस दर्जा तग़ाफ़ुल न बरत
जीना अज़ाब क्यूँ है ये क्या हो गया मुझे
ज़ुल्म है तख़्त ताज सन्नाटा
वो पास रह के भी मुझ में समा नहीं सकता
दोस्ती कुछ नहीं उल्फ़त का सिला कुछ भी नहीं