गुफ़्तुगू तीर सी लगी दिल में
अब है शायद इलाज सन्नाटा
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ये तमन्ना है कि अब और तमन्ना न करें
दर्द जब शाएरी में ढलते हैं
कुछ तो अपने लिए भी रखना है
ख़ाली बरामदों ने मुझे देख कर कहा
अपनी आदत कि सब से सब कह दें
निकले थे दोनों भेस बदल के तो क्या अजब
ये अलग बात कि वो मुझ से ख़फ़ा रहता है
जीना अज़ाब क्यूँ है ये क्या हो गया मुझे
कैसे हो क्या है हाल मत पूछो
चाँद सूरज की तरह तुम भी हो क़ुदरत का खेल
झूटी उम्मीद की उँगली को पकड़ना छोड़ो
खुल के बातें करें सुनाएँ सब