बुत समझते थे जिस को सारे लोग
वो मिरे वास्ते ख़ुदा सा था
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कैसे हो क्या है हाल मत पूछो
किसी क़िस्मत में एक घर निकला
ऐसा नहीं कि उन से मोहब्बत न हो मगर
ये तमन्ना है कि अब और तमन्ना न करें
वो एक ख़्वाब जो फिर लौट कर नहीं आया
कभी ख़्वाबों में मिला वो तो ख़यालों में कभी
कुछ तो मैं भी डरा डरा सा था
झाँकते रात के गरेबाँ से
वो पास रह के भी मुझ में समा नहीं सकता
जिस से सारे चराग़ जलते थे
जब ये माना कि दिल में डर है बहुत
जीना अज़ाब क्यूँ है ये क्या हो गया मुझे