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ये तमन्ना है कि अब और तमन्ना न करें - सलमान अख़्तर कविता - Darsaal

ये तमन्ना है कि अब और तमन्ना न करें

ये तमन्ना है कि अब और तमन्ना न करें

शेर कहते रहें चुप चाप तक़ाज़ा न करें

इन बदलते हुए हालात में बेहतर है यही

आईना देखें तो ख़ुद अपने को ढूँडा न करें

तू गुरेज़ाँ रही ऐ ज़िंदगी हम से लेकिन

कैसे मुमकिन है कि हम भी तुझे चाहा न करें

इस नए दौर के लोगों से ये कह दे कोई

दिल के दुखड़ों का सर-ए-आम तमाशा न करें

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In Hindi By Famous Poet Salman Akhtar. is written by Salman Akhtar. Complete Poem in Hindi by Salman Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.