किसी क़िस्मत में एक घर निकला
किसी तक़दीर में सफ़र निकला
ज़ख़्म से कुछ ग़ज़ल के शेर उगे
शाख़ से फूट कर समर निकला
दोस्त बन कर वफ़ा न की जिस ने
हुआ दुश्मन तो मो'तबर निकला
नए आँसू थे आस्तीं के लिए
दामन-ए-दिल कभी का तर निकला
जब ये माना कि दिल में डर है बहुत
तब कहीं जा के दिल से डर निकला