दोस्ती कुछ नहीं उल्फ़त का सिला कुछ भी नहीं
दोस्ती कुछ नहीं उल्फ़त का सिला कुछ भी नहीं
आज दुनिया में ब-जुज़ ज़ेहन-ए-रसा कुछ भी नहीं
पत्ते सब गिर गए पेड़ों से मगर क्या कहिए
ऐसा लगता है हमें जैसे हुआ कुछ भी नहीं
कल की यादों की जलाने को जलाएँ मिशअल
एक तारीक उदासी के सिवा कुछ भी नहीं
ढूँढना छोड़ दो परछाईं का मस्कन यारो
चाहे जिस तरह जियो इस में नया कुछ भी नहीं
इक बुरोटस से शिकायत हो तो दिल दुखता है
हो जो हर एक से शिकवा तो गिला कुछ भी नहीं
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