दाइम सराब इक मिरे अंदर है क्या करूँ

दाइम सराब इक मिरे अंदर है क्या करूँ

सहरा मिरी नज़र में समुंदर है क्या करूँ

देखे जो मेरी नेकी को शक की निगाह से

वो आदमी भी तो मिरे अंदर है क्या करूँ

यक-गूना बे-ख़ुदी को ही अब ढूँढता है दिल

ग़म और ख़ुशी का बोझ बराबर है क्या करूँ

अच्छा तो है कि सब से मिलूँ एक ही तरह

लेकिन वो और लोगों से बेहतर है क्या करूँ

मिलते हैं यूँ तो लोग ब-ज़ाहिर बहुत गले

हर आस्तीन में कोई ख़ंजर है क्या करूँ

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In Hindi By Famous Poet Salman Akhtar. is written by Salman Akhtar. Complete Poem in Hindi by Salman Akhtar. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.