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हम झुकाते भी कहाँ सर को क़ज़ा से पहले - सलमा शाहीन कविता - Darsaal

हम झुकाते भी कहाँ सर को क़ज़ा से पहले

हम झुकाते भी कहाँ सर को क़ज़ा से पहले

वक़्त ने दी है सज़ा हम को ख़ता से पहले

अपनी क़िस्मत में कहाँ रक़्स-ए-शरर का मंज़र

शम-ए-जाँ बुझ गई दामन की हवा से पहले

ये अलग बात कि मंज़िल का निशाँ कोई न था

कोहसार और भी थे कोह-ए-निदा से पहले

मुद्दआ' कोई न था तेरे सिवा क्या करते

दिल धड़कता ही रहा हर्फ़-ए-दुआ से पहले

रू-ब-रू उस के रही आइना बन कर शाहीन

देख ले अपनी नज़र जुर्म-ए-जफ़ा से पहले

इस की आँखों में अजब सेहर है 'सलमा-शाहीन'

हो गई हूँ मैं शिफ़ायाब दवा से पहले

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In Hindi By Famous Poet Salma Shaheen. is written by Salma Shaheen. Complete Poem in Hindi by Salma Shaheen. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.