हम झुकाते भी कहाँ सर को क़ज़ा से पहले
हम झुकाते भी कहाँ सर को क़ज़ा से पहले
वक़्त ने दी है सज़ा हम को ख़ता से पहले
अपनी क़िस्मत में कहाँ रक़्स-ए-शरर का मंज़र
शम-ए-जाँ बुझ गई दामन की हवा से पहले
ये अलग बात कि मंज़िल का निशाँ कोई न था
कोहसार और भी थे कोह-ए-निदा से पहले
मुद्दआ' कोई न था तेरे सिवा क्या करते
दिल धड़कता ही रहा हर्फ़-ए-दुआ से पहले
रू-ब-रू उस के रही आइना बन कर शाहीन
देख ले अपनी नज़र जुर्म-ए-जफ़ा से पहले
इस की आँखों में अजब सेहर है 'सलमा-शाहीन'
हो गई हूँ मैं शिफ़ायाब दवा से पहले
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