Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_b53a77f52a1409af95cd72e59bb471bb, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
ख़ाक-बस्ता हैं तह-ए-ख़ाक से बाहर न हुए - सलीम शुजाअ अंसारी कविता - Darsaal

ख़ाक-बस्ता हैं तह-ए-ख़ाक से बाहर न हुए

ख़ाक-बस्ता हैं तह-ए-ख़ाक से बाहर न हुए

जिस्म अपने कभी पोशाक से बाहर न हुए

जुरअत-ए-बाज़ू-ए-पैराक से बाहर न हुए

ये समुंदर मिरी इम्लाक से बाहर न हुए

ज़ेहन-ए-ख़ुफ़्ता ने हमा-वक़्त सई की लेकिन

फ़िक्र के ज़ाविए इदराक से बाहर न हुए

ज़ख़्म देती है नया रोज़ मुझे भूक मिरी

ये मसाइब मिरी ख़ूराक से बाहर न हुए

ज़ेर-ए-तकमील हैं दस्त-ए-फ़न-ए-कूज़ा-गर में

हम वो ईजाद हैं जो चाक से बाहर न हुए

शाख़ पर उभरे हैं ताबिंदा गुलों की सूरत

जो शरारे ख़स-ओ-ख़ाशाक से बाहर न हुए

काम आई न कोई वक़्त की चारा-जुई

ज़ख़्म-ए-कोहना दिल-ए-सद-चाक से बाहर न हुए

महव-ए-परवाज़ हैं सदियों से यूँही शम्स-ओ-क़मर

ये परिंदे हद-ए-अफ़्लाक से बाहर न हुए

मस्लहत-कोश हुए वक़्त के चेहरे 'सालिम'

अक्स आईना-ए-बेबाक से बाहर न हुए

(460) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Salim Shuja Ansari. is written by Salim Shuja Ansari. Complete Poem in Hindi by Salim Shuja Ansari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.