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आज शायद ज़िंदगी का फ़ल्सफ़ा समझा हूँ मैं - सलीम शुजाअ अंसारी कविता - Darsaal

आज शायद ज़िंदगी का फ़ल्सफ़ा समझा हूँ मैं

आज शायद ज़िंदगी का फ़ल्सफ़ा समझा हूँ मैं

हूँ ज़रूरत ज़िंदगी की इस लिए ज़िंदा हूँ मैं

है मिरी तख़्लीक़ में उंसुर बग़ावत का कोई

जिस जगह पाबंदियाँ थीं उस जगह पहुँचा हूँ मैं

इक अजब सा है तअ'ल्लुक़ उस के मेरे दरमियाँ

ऐसा लगता है कि उस की ज़ात का हिस्सा हूँ मैं

हैं नुमायाँ जिस के चेहरे पर हक़ीक़त के नुक़ूश

तेरे शहर-ए-ख़्वाब में वो आदमी तन्हा हूँ मैं

छा गया हूँ ख़ौफ़ बन कर अपने ही आ'साब पर

और कभी बे-ख़ौफ़ हो कर ख़ौफ़ से निकला हूँ मैं

हैं ज़मीं पर हर तरफ़ मेरे ही क़दमों के निशाँ

रोज़-ए-अव्वल से ही 'सालिम' कोई आवारा हूँ मैं

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In Hindi By Famous Poet Salim Shuja Ansari. is written by Salim Shuja Ansari. Complete Poem in Hindi by Salim Shuja Ansari. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.