Ghazals of Salim Shuja Ansari
नाम | सलीम शुजाअ अंसारी |
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अंग्रेज़ी नाम | Salim Shuja Ansari |
ज़ब्त की हद से गुज़र कर ख़ार तो होना ही था
तमाम उम्र की तन्हाइयों पे भारी थी
सालिम यक़ीन-ए-अज़्मत-ए-सेहर-ए-ख़ुदा न तोड़
पेश-ए-इदराक मिरी फ़िक्र के शाने खुल जाएँ
मुख़ालिफ़ जब से आईना हुआ है
मुझे जब भी कभी तेरी कमी महसूस होती है
ख़ाक-बस्ता हैं तह-ए-ख़ाक से बाहर न हुए
कभी मिली है जो फ़ुर्सत तो ये हिसाब किया
जब आसमान ज़मीं पर उतरने लगता है
हज़ारों रंज मिले सैंकड़ों मलाल मिले
ग़ुबार-ए-फ़िक्र को तहरीर करता रहता हूँ
दिल में औरों के लिए कीना-ओ-कद रखते हैं
धड़कनें बन के जो सीने में रहा करता था
आज शायद ज़िंदगी का फ़ल्सफ़ा समझा हूँ मैं