बुझा रखे हैं ये किस ने सभी चराग़-ए-हवस
ज़रा सा झाँक के देखें कहीं हवा ही न हो
Habib Jalib
Gulzar
Mir Taqi Mir
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Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Jaun Eliya
Anwar Masood
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कुछ भी नहीं है बाक़ी बाज़ार चल रहा है
हंगामा-ए-सुकूत बपा कर चुके हैं हम
मैं आप अपने अंधेरों में बैठ जाता हूँ
कुछ तो ठहरे हुए दरिया में रवानी करें हम
ज़ेहन की क़ैद से आज़ाद किया जाए उसे
ज़माँ मकाँ से भी कुछ मावरा बनाने में
दश्त की वीरानियों में ख़ेमा-ज़न होता हुआ
तमाम बिछड़े हुओं को मिलाओ आज की रात
हुदूद-ए-शहर-ए-तिलिस्मात से नहीं निकला
जो एक दम में तमाम रूहों को ख़ाक कर दे
ख़ुद अपनी ख़्वाहिशें ख़ाक-ए-बदन में बोने को