आ रहा होगा वो दामन से हवा बाँधे हुए
आज ख़ुशबू को परेशान किया जाएगा
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मेरी अर्ज़ानी से मुझ को वो निकालेगा मगर
ज़िंदगी ने जो कहीं का नहीं रक्खा मुझ को
बुझा रखे हैं ये किस ने सभी चराग़-ए-हवस
ज़ेहन की क़ैद से आज़ाद किया जाए उसे
अब इस के बाद कुछ भी नहीं इख़्तियार में
भरे बाज़ार में बैठा हूँ लिए जिंस-ए-वजूद
मिरे ठहराव को कुछ और भी वुसअत दी जाए
एक हंगामा बपा है अर्सा-ए-अफ़्लाक पर
जो एक दम में तमाम रूहों को ख़ाक कर दे
तमाम बिछड़े हुओं को मिलाओ आज की रात
बुझी बुझी हुई आँखों में गोशवारा-ए-ख़्वाब