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न छीन ले कहीं तन्हाई डर सा रहता है - सालिम सलीम कविता - Darsaal

न छीन ले कहीं तन्हाई डर सा रहता है

न छीन ले कहीं तन्हाई डर सा रहता है

मिरे मकाँ में वो दीवार-ओ-दर सा रहता है

कभी कभी तो उभरती है चीख़ सी कोई

कहीं कहीं मिरे अंदर खंडर सा रहता है

वो आसमाँ हो कि परछाईं हो कि तेरा ख़याल

कोई तो है जो मिरा हम-सफ़र सा रहता है

मैं जोड़ जोड़ के जिस को ज़माना करता हूँ

वो मुझ में टूटा हुआ लम्हा भर सा रहता है

ज़रा सा निकले तो ये शहर उलट पलट जाए

वो अपने घर में बहुत बे-ज़रर सा रहता है

बुला रहा था वो दरिया के पार से इक दिन

जभी से पाँव में मेरे भँवर सा रहता है

न जाने कैसी गिरानी उठाए फिरता हूँ

न जाने क्या मिरे काँधे पे सर सा रहता है

चलो 'सलीम' ज़रा कुछ इलाज-ए-जाँ कर लें

यहीं कहीं पे कोई चारा-गर सा रहता है

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In Hindi By Famous Poet Salim Saleem. is written by Salim Saleem. Complete Poem in Hindi by Salim Saleem. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.