Warning: session_start(): open(/var/cpanel/php/sessions/ea-php56/sess_573aaf8ab411e38d2f88f588a8efff50, O_RDWR) failed: Disk quota exceeded (122) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1

Warning: session_start(): Failed to read session data: files (path: /var/cpanel/php/sessions/ea-php56) in /home/dars/public_html/helper/cn.php on line 1
दश्त की वीरानियों में ख़ेमा-ज़न होता हुआ - सालिम सलीम कविता - Darsaal

दश्त की वीरानियों में ख़ेमा-ज़न होता हुआ

दश्त की वीरानियों में ख़ेमा-ज़न होता हुआ

मुझ में ठहरा है कोई बे-पैरहन होता हुआ

एक परछाईं मिरे क़दमों में बल खाती हुई

एक सूरज मेरे माथे की शिकन होता हुआ

एक कश्ती ग़र्क़ मेरी आँख में होती हुई

इक समुंदर मेरे अंदर मौजज़न होता हुआ

जुज़ हमारे कौन आख़िर देखता इस काम को

रूह के अंदर कोई कार-ए-बदन होता हुआ

मेरे सारे लफ़्ज़ मेरी ज़ात में खोए हुए

ज़िक्र उस का अंजुमन-दर-अंजुमन होता हुआ

(432) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

In Hindi By Famous Poet Salim Saleem. is written by Salim Saleem. Complete Poem in Hindi by Salim Saleem. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.