Ghazals of Salim Saleem
नाम | सालिम सलीम |
---|---|
अंग्रेज़ी नाम | Salim Saleem |
जन्म की तारीख | 1985 |
जन्म स्थान | Delhi |
ज़ेहन की क़ैद से आज़ाद किया जाए उसे
ज़माँ मकाँ से भी कुछ मावरा बनाने में
सुकूत-ए-अर्ज़-ओ-समा में ख़ूब इंतिशार देखूँ
पस-ए-निगाह कोई लौ भड़कती रहती है
नए जहानों का इक इस्तिआरा कर के लाओ
न छीन ले कहीं तन्हाई डर सा रहता है
मेरी अर्ज़ानी से मुझ को वो निकालेगा मगर
मिरे ठहराव को कुछ और भी वुसअत दी जाए
कुछ तो ठहरे हुए दरिया में रवानी करें हम
कुछ भी नहीं है बाक़ी बाज़ार चल रहा है
ख़ुद अपनी ख़्वाहिशें ख़ाक-ए-बदन में बोने को
कनार-ए-आब तिरे पैरहन बदलने का
काम हर रोज़ ये होता है किस आसानी से
जिस्म की सतह पे तूफ़ान किया जाएगा
हुदूद-ए-शहर-ए-तिलिस्मात से नहीं निकला
हवा से इस्तिफ़ादा कर लिया है
हर एक साँस के पीछे कोई बला ही न हो
हंगामा-ए-सुकूत बपा कर चुके हैं हम
इक नए शहर-ए-ख़ुश-ए-आसार की बीमारी है
एक हंगामा बपा है अर्सा-ए-अफ़्लाक पर
दश्त की वीरानियों में ख़ेमा-ज़न होता हुआ
दालान में कभी कभी छत पर खड़ा हूँ मैं
बुझी बुझी हुई आँखों में गोशवारा-ए-ख़्वाब
बदन सिमटा हुआ और दश्त-ए-जाँ फैला हुआ है