ज़िंदाँ में आचानक है ये क्या शोर-ए-सलासिल
ये 'सालिक'-ए-बेबाक का मातम तो नहीं है
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मंज़िल न मिली कश्मकश-ए-अहल-ए-नज़र में
दिल ने सीने में कुछ क़रार लिया
सितारे की तरह सीने में दिल डूबा किया लेकिन
अब ऐसी बातें कोई करे जो सब के मन को लुभा जाएँ
नज़र से देख तो साक़ी इक आईना बनाया है
महव यूँ हो गए अल्फ़ाज़-ए-दुआ वक़्त-ए-दुआ
खनक जाते हैं जब साग़र तो पहरों कान बजते हैं
डरता रहता हूँ हम-नशीनों में
अपनी ख़ुद्दारी सलामत दिल का आलम कुछ सही
यूँही इंसानों के शहरों में मिला अपना वजूद
बहार-ए-गुलिस्ताँ हम को न पहचाने तअज्जुब है