यूँही इंसानों के शहरों में मिला अपना वजूद
किसी वीराने में इक फूल खिला हो जैसे
Allama Iqbal
Gulzar
Rahat Indori
Habib Jalib
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Parveen Shakir
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कही किसी से न रूदाद-ए-ज़िंदगी मैं ने
नाख़ुदा डूबने वालों की तरफ़ मुड़ के न देख
ज़िंदाँ में आचानक है ये क्या शोर-ए-सलासिल
निगाह-ए-मेहर कहाँ की वो बरहमी भी गई
अपनी ख़ुद्दारी सलामत दिल का आलम कुछ सही
जो तेरी बज़्म से उट्ठा वो इस तरह उट्ठा
वुसअ'त-ए-दामान-ए-दिल को ग़म तुम्हारा मिल गया
नज़र से देख तो साक़ी इक आईना बनाया है
सितारे की तरह सीने में दिल डूबा किया लेकिन
मय-ख़ाना-ए-हस्ती में साक़ी हम दोनों ही मुजरिम हैं शायद
साहिल पे क़ैद लाखों सफ़ीनों के वास्ते