निगाह-ए-शौक़ से लाखों बना डाले हैं दर हम ने
क़फ़स में भी नहीं मानी शिकस्त-ए-बाल-ओ-पर हम ने
Habib Jalib
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Gulzar
Parveen Shakir
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महव यूँ हो गए अल्फ़ाज़-ए-दुआ वक़्त-ए-दुआ
चाहा था ठोकरों में गुज़र जाए ज़िंदगी
वुसअ'त-ए-दामान-ए-दिल को ग़म तुम्हारा मिल गया
अब ऐसी बातें कोई करे जो सब के मन को लुभा जाएँ
मिट चुके जो भी थे तौबा-शिकनी के अस्बाब
धुआँ देता है दामान-ए-मोहब्बत
आज भी है वही मक़ाम आज भी लब पे उन का नाम
साहिल पे क़ैद लाखों सफ़ीनों के वास्ते
मंज़िल न मिली कश्मकश-ए-अहल-ए-नज़र में
सितारे की तरह सीने में दिल डूबा किया लेकिन
जो तेरी बज़्म से उट्ठा वो इस तरह उट्ठा
खनक जाते हैं जब साग़र तो पहरों कान बजते हैं