माल-ओ-ज़र अहल-ए-दुवल सामने यूँ गिनते हैं
हम फ़क़ीरों ने न कुछ सर्फ़ किया हो जैसे
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Anwar Masood
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धुआँ देता है दामान-ए-मोहब्बत
अब ऐसी बातें कोई करे जो सब के मन को लुभा जाएँ
अपनी ख़ुद्दारी सलामत दिल का आलम कुछ सही
खनक जाते हैं जब साग़र तो पहरों कान बजते हैं
चाहा था ठोकरों में गुज़र जाए ज़िंदगी
यूँही इंसानों के शहरों में मिला अपना वजूद
मिट चुके जो भी थे तौबा-शिकनी के अस्बाब
खींच भी लीजिए अच्छा तो है तस्वीर-ए-जुनूँ
महव यूँ हो गए अल्फ़ाज़-ए-दुआ वक़्त-ए-दुआ
कही किसी से न रूदाद-ए-ज़िंदगी मैं ने
आज भी है वही मक़ाम आज भी लब पे उन का नाम