खींच भी लीजिए अच्छा तो है तस्वीर-ए-जुनूँ
आप की बज़्म में क्या जानिए कल हों कि न हों
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आज भी है वही मक़ाम आज भी लब पे उन का नाम
अपनी ख़ुद्दारी सलामत दिल का आलम कुछ सही
कही किसी से न रूदाद-ए-ज़िंदगी मैं ने
नज़र से देख तो साक़ी इक आईना बनाया है
नाख़ुदा डूबने वालों की तरफ़ मुड़ के न देख
अब ऐसी बातें कोई करे जो सब के मन को लुभा जाएँ
चाहा था ठोकरों में गुज़र जाए ज़िंदगी
डरता रहता हूँ हम-नशीनों में
माल-ओ-ज़र अहल-ए-दुवल सामने यूँ गिनते हैं
दिल ने सीने में कुछ क़रार लिया
धुआँ देता है दामान-ए-मोहब्बत