धुआँ देता है दामान-ए-मोहब्बत
इन आँखों से कोई आँसू गिरा है
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नाख़ुदा डूबने वालों की तरफ़ मुड़ के न देख
दिल ने सीने में कुछ क़रार लिया
निगाह-ए-मेहर कहाँ की वो बरहमी भी गई
साहिल पे क़ैद लाखों सफ़ीनों के वास्ते
मय-ख़ाना-ए-हस्ती में साक़ी हम दोनों ही मुजरिम हैं शायद
मिट चुके जो भी थे तौबा-शिकनी के अस्बाब
डरता रहता हूँ हम-नशीनों में
खींच भी लीजिए अच्छा तो है तस्वीर-ए-जुनूँ
वुसअ'त-ए-दामान-ए-दिल को ग़म तुम्हारा मिल गया
निगाह-ए-शौक़ से लाखों बना डाले हैं दर हम ने
खनक जाते हैं जब साग़र तो पहरों कान बजते हैं
नज़र से देख तो साक़ी इक आईना बनाया है