अपनी ख़ुद्दारी सलामत दिल का आलम कुछ सही
जिस जगह से उठ चुके हैं उस जगह फिर जाएँ क्या
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Rahat Indori
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Gulzar
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(816) Peoples Rate This
निगाह-ए-मेहर कहाँ की वो बरहमी भी गई
खींच भी लीजिए अच्छा तो है तस्वीर-ए-जुनूँ
कही किसी से न रूदाद-ए-ज़िंदगी मैं ने
अब ऐसी बातें कोई करे जो सब के मन को लुभा जाएँ
नज़र से देख तो साक़ी इक आईना बनाया है
डरता रहता हूँ हम-नशीनों में
ये भी इक रात कट ही जाएगी
चाहा था ठोकरों में गुज़र जाए ज़िंदगी
मंज़िल न मिली कश्मकश-ए-अहल-ए-नज़र में
यूँही इंसानों के शहरों में मिला अपना वजूद
दिल ने सीने में कुछ क़रार लिया