आज भी है वही मक़ाम आज भी लब पे उन का नाम
मंज़िल-ए-बे-शुमार-गाम अपने सफ़र को क्या करूँ
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ये भी इक रात कट ही जाएगी
साहिल पे क़ैद लाखों सफ़ीनों के वास्ते
मिट चुके जो भी थे तौबा-शिकनी के अस्बाब
मंज़िल न मिली कश्मकश-ए-अहल-ए-नज़र में
कही किसी से न रूदाद-ए-ज़िंदगी मैं ने
खींच भी लीजिए अच्छा तो है तस्वीर-ए-जुनूँ
महव यूँ हो गए अल्फ़ाज़-ए-दुआ वक़्त-ए-दुआ
दिल ने सीने में कुछ क़रार लिया
धुआँ देता है दामान-ए-मोहब्बत
डरता रहता हूँ हम-नशीनों में
जो तेरी बज़्म से उट्ठा वो इस तरह उट्ठा