ख़रीदने के लिए उस को बिक गया ख़ुद ही
मैं वो हूँ जिस को मुनाफ़े में भी ख़सारा हुआ
Gulzar
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Anwar Masood
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Rahat Indori
Jaun Eliya
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(616) Peoples Rate This
हूँ पारसा तिरे पहलू में शब गुज़ार के भी
अपने जीने के हम अस्बाब दिखाते हैं तुम्हें
उम्र भर जिस के लिए पेट से बाँधे पत्थर
इक दरीचे की तमन्ना मुझे दूभर हुई है
हम आदमी की तरह जी रहे हैं सदियों से
ख़्वाहिश-ए-तख़्त न अब दिरहम-ओ-दीनार की गूँज
ज़ख़्म-दर-ज़ख़्म सुख़न और भी होता है वसीअ
कज-कुलाही पे न मग़रूर हुआ कर इतना
मंज़र-ए-ख़ेमा-ए-शब देखने वाला होगा
बेड़ियाँ डाल के परछाईं की पैरों में मिरे
इक एक हर्फ़ की रखनी है आबरू मुझ को
यक़ीं की धूप में साया भी कुछ गुमान का है