अपने जीने के हम अस्बाब दिखाते हैं तुम्हें
दोस्तो आओ कि कुछ ख़्वाब दिखाते हैं तुम्हें
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कज-कुलाही पे न मग़रूर हुआ कर इतना
तुझ को पाने के लिए ख़ुद से गुज़र तक जाऊँ
उम्र भर जिस के लिए पेट से बाँधे पत्थर
बदन क़ुबूल है उर्यानियत का मारा हुआ
ज़ख़्म-दर-ज़ख़्म सुख़न और भी होता है वसीअ
कौन सा जुर्म ख़ुदा जाने हुआ है साबित
बेड़ियाँ डाल के परछाईं की पैरों में मिरे
ख़रीदने के लिए उस को बिक गया ख़ुद ही
यूँ तिरी चाप से तहरीक-ए-सफ़र टूटती है
हम आदमी की तरह जी रहे हैं सदियों से