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ग़म-ए-हयात मिटाना है रो के देखते हैं - सलीम सिद्दीक़ी कविता - Darsaal

ग़म-ए-हयात मिटाना है रो के देखते हैं

ग़म-ए-हयात मिटाना है रो के देखते हैं

लहू का दाग़ लहू से ही धो के देखते हैं

अतश की नींद बहुत बढ़ गई है आँखों में

चलो फ़ुरात की बाहोँ में सो के देखते हैं

हमें हमारे अलावा भी जानता है कोई

विरासतों की ये पहचान खो के देखते हैं

तमाम उम्र बहुत रोए ज़िंदगी के लिए

अब अपनी लाश पे कुछ देर रो के देखते हैं

अजीब लोग हैं लाशों में ज़िंदगी के निशाँ

हर एक जिस्म में नेज़ा चुभो के देखते हैं

इस आरज़ू में बदन हो गया है ज़ख़्म-आलूद

कि एक रात गुलाबों पे सो के देखते हैं

हम आदमी की तरह जी रहे हैं सदियों से

चलो 'सलीम' अब इंसान हो के देखते हैं

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In Hindi By Famous Poet Saleem Siddiqui. is written by Saleem Siddiqui. Complete Poem in Hindi by Saleem Siddiqui. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.