बातों में है उस की ज़हर थोड़ा
थोड़ा सा मज़ा शराब जैसा
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किसी रुत में जब मुस्कुराता है तू
फिर न आएगा ये लम्हा सोच ले
अबजद
हवा की ज़द में पत्ते की तरह था
रहा वो शहर में जब तक बड़ा दबंग रहा
रेत पर मुझ को गुमाँ पानी का था
कब तक इन आवारा मौजों का तमाशा देखना
ज़र्द पत्ते में कोई नुक़्ता-ए-सब्ज़
वहम ओ ख़िरद के मारे हैं शायद सब लोग
उसे पता है कि रुकती नहीं है छाँव कभी