अन-कही कह अन-सुनी बातें सुना
रह गया जो कुछ भी सोचा सोच ले
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Anwar Masood
Habib Jalib
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Sharabi Poetry
Friends Poetry
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हाँ कहीं जुगनू चमकता था चलो वापस चलो
बातों में है उस की ज़हर थोड़ा
उसे पता है कि रुकती नहीं है छाँव कभी
लगता है वो आज ख़्वाब जैसा
बाल-ओ-पर हों तो फ़ज़ा काफ़ी है
किसी रुत में जब मुस्कुराता है तू
कब तक इन आवारा मौजों का तमाशा देखना
नहीं है कोई दूसरा मंज़र चारों ओर
हवा की ज़द में पत्ते की तरह था
फिर न आएगा ये लम्हा सोच ले
ज़र्द पत्ते में कोई नुक़्ता-ए-सब्ज़