नज़्म की तख़्ती पे ग़ज़ल के हिज्जे
पंजों पे गाजनी के बिलकते बिलकते
रिश्तों की अबजद पे हिरासाँ खड़े थे
लम्हों की रसोई में हर्फ़ों की हंडिया
अहद-ए-नज़ार से जुड़ गई
न ग़ज़ल की तख़्ती
न नज़्म के हिज्जे बस अबजद थी
कि रिश्तों की जदवल में
पड़ी पड़ी हर्फ़ों की शनाख़्त भूल गई