सलीम शहज़ाद कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का सलीम शहज़ाद
नाम | सलीम शहज़ाद |
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अंग्रेज़ी नाम | Saleem Shahzad |
ज़र्द पत्ते में कोई नुक़्ता-ए-सब्ज़
वहम ओ ख़िरद के मारे हैं शायद सब लोग
उसे पता है कि रुकती नहीं है छाँव कभी
कब तक इन आवारा मौजों का तमाशा देखना
हवा की ज़द में पत्ते की तरह था
बातों में है उस की ज़हर थोड़ा
अन-कही कह अन-सुनी बातें सुना
आग भी बरसी दरख़्तों पर वहीं
अबजद
यक़ीन है कि वो मेरी ज़बाँ समझता है
शहरयारों ने दिखाईं मुझ को तस्वीरें बहुत
सदियों के रंग-ओ-बू को न ढूँडो गुफाओं में
रेत पर मुझ को गुमाँ पानी का था
रंग ताबीर का टूटे हुए ख़्वाबों में नहीं
रहा वो शहर में जब तक बड़ा दबंग रहा
फिर न आएगा ये लम्हा सोच ले
नहीं है कोई दूसरा मंज़र चारों ओर
लगता है वो आज ख़्वाब जैसा
किसी रुत में जब मुस्कुराता है तू
हवा की ज़द में पत्ते की तरह था
हाँ कहीं जुगनू चमकता था चलो वापस चलो
बाल-ओ-पर हों तो फ़ज़ा काफ़ी है