सुब्ह-ए-सफ़र का राज़ किसी पर यहाँ न खोल
सुब्ह-ए-सफ़र का राज़ किसी पर यहाँ न खोल
तूफ़ाँ है पानियों में अभी बादबाँ न खोल
पसमाँदगाँ पे छोड़ कि ढूँडें नुक़ूश-ए-पा
जो संग-ओ-ख़िश्त हैं तह-ए-आब-ए-रवाँ न खोल
मैं ने सराब-ए-फ़हम के सब राज़ पा लिए
अब लाख मुझ पे उक़्दा-ए-हफ़्त-आसमाँ न खोल
सब कुछ यहाँ है चश्म-ए-ख़रीदार की पसंद
उज़्र-ए-मता-ए-दर्द अगर है दुकाँ न खोल
शाख़-ए-शजर पे शोला-ए-ख़ुर्शीद बुझ तो ले
कुछ देर तीरगी पे दर-ए-ख़ाक-दाँ न खोल
हर बज़्म क्यूँ नुमाइश-ए-ज़ख़्म-ए-हुनर बने
हर भेद अपने दोस्तों के दरमियाँ न खोल
'शाहिद' हिसार-ए-जेल पे तेशे से वार कर
इन पत्थरों के रू-ब-रू अपनी ज़बाँ न खोल
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