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मुर्दा रगों में ख़ून की गर्मी कहाँ से आई - सलीम शाहिद कविता - Darsaal

मुर्दा रगों में ख़ून की गर्मी कहाँ से आई

मुर्दा रगों में ख़ून की गर्मी कहाँ से आई

थी शाख़ सब्ज़ फूल में सुर्ख़ी कहाँ से आई

ये उम्र-ए-राएगाँ ये सफ़र ख़्वाब में कटा

फिर ये थकन ये पाँव पे मिट्टी कहाँ से आई

दीवार ख़ूँ-चकाँ न मिरा ज़ख़्म-ए-सर है सुर्ख़

ये मस्लहत बता दिल-ए-वहशी कहाँ से आई

मैं सुल्ह जो हुआ ग़लत इल्ज़ाम से ख़फ़ा

अब पूछते हो बात में तल्ख़ी कहाँ से आई

इल्ज़ाम तुम पे है लब-ए-गोया गुरेज़ का

बेबाक हो तो फिर ये ख़राबी कहाँ से आई

मुझ जैसा कम-सुख़न भी है इस बार सख़्त-गो

इस सुस्त आब-जू में रवानी कहाँ से आई

खिलता है मौसमों के तग़य्युर का मुझ से रंग

आख़िर मिरे ख़मीर की मिट्टी कहाँ से आई

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In Hindi By Famous Poet Saleem Shahid. is written by Saleem Shahid. Complete Poem in Hindi by Saleem Shahid. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.