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जुरअत-ए-इज़हार का उक़्दा यहाँ कैसे खुले - सलीम शाहिद कविता - Darsaal

जुरअत-ए-इज़हार का उक़्दा यहाँ कैसे खुले

जुरअत-ए-इज़हार का उक़्दा यहाँ कैसे खुले

मस्लहत का बीम दिल में है ज़बाँ कैसे खुले

बे-दिली से है रग-ओ-पै में लहू ठहरा हुआ

आँख में पोशीदा ज़ख़्मों का निशाँ कैसे खुले

दाम-ए-साहिल है सफ़ीने की असीरी का सबब

सर पटकता हूँ कि अब ये बादबाँ कैसे खुले

हर्फ़-ए-मुबहम की तरह औराक़-ए-रोज़-ओ-शब में हूँ

राज़ आख़िर दुश्मनों के दरमियाँ कैसे खुले

हर घड़ी दस्तक कोई देता है अंदर से मुझे

सोचता रहता हूँ बाब-जिस्म-ओ-जाँ कैसे खुले

लफ़्ज़ हैं शाहिद मिरी तहरीर के अफ़्सुर्दा लब

शे'र में पोशीदा मा'नी का जहाँ कैसे खुले

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In Hindi By Famous Poet Saleem Shahid. is written by Saleem Shahid. Complete Poem in Hindi by Saleem Shahid. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.