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दिल भर आए और अब्र-ए-दीदा में पानी न हो - सलीम शाहिद कविता - Darsaal

दिल भर आए और अब्र-ए-दीदा में पानी न हो

दिल भर आए और अब्र-ए-दीदा में पानी न हो

ये ज़मीं सहरा दिखाई दे जो बारानी न हो

शौक़ इतना सहल क्यूँ उस पार ले जाए मुझे

फिर पलट आऊँ अगर दरिया में तुग़्यानी न हो

कान बजते हैं हवा की सीटियों पर रात-भर

चौंक उठता हूँ कि आहट जानी-पहचानी न हो

हो गए बे-ख़ुद तो टीसों का मज़ा छिन जाएगा

रोकता हूँ दर्द की इतनी फ़रावानी न हो

तेरे होने से मिरे दिल में है यादों की चमक

चाँद बुझ जाए अगर सूरज में ताबानी न हो

ढाँप ले मिट्टी से तन अपना अगर मक़्दूर हो

पैरहन कैसा अगर एहसास-ए-उर्यानी न हो

जी रहा हूँ मैं कि औरों से भी है वाबस्तगी

मौत आ जाए अगर कोई परेशानी न हो

डाल दे 'शाहिद' शफ़क़ पर रात की काली रिदा

मेरे दरवाज़े से ज़ाहिर घर की वीरानी न हो

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In Hindi By Famous Poet Saleem Shahid. is written by Saleem Shahid. Complete Poem in Hindi by Saleem Shahid. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.