तू ने ग़म ख़्वाह-मख़ाह उस का उठाया हुआ है
तू ने ग़म ख़्वाह-मख़ाह उस का उठाया हुआ है
दिल ये नादाँ तो किसी और पे आया हुआ है
इस ज़माने को दिखाने के लिए चेहरे पर
हम ने इक चेहरा-ए-शादाब चढ़ाया हुआ है
रात-भर चाँद-सितारों से सजाते हैं उसे
हम ने जिस घर को तसव्वुर में बसाया हुआ है
एक चेहरा जिसे हम ने भी नहीं देखा कभी
अपनी आँखों में ज़माने से छुपाया हुआ है
सहल लगता है तुझे क्या सफ़र-ए-शेर-ओ-सुख़न
उम्र-भर धूप में झुलसे हैं तो साया हुआ है
विर्द करते थे कभी जिस का शब-ओ-रोज़ 'सलीम'
जाने क्या नाम था अब दिल ने भुलाया हुआ है
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